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रा॒यस्का॑मो॒ वज्र॑हस्तं सु॒दक्षि॑णं पु॒त्रो न पि॒तरं॑ हुवे ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

rāyaskāmo vajrahastaṁ sudakṣiṇam putro na pitaraṁ huve ||

पद पाठ

रा॒यःऽका॑मः। वज्र॑ऽहस्तम्। सु॒ऽदक्षि॑णम्। पु॒त्रः। न। पि॒तर॑म्। हु॒वे॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:32» मन्त्र:3 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:17» मन्त्र:3 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर किसको कौन किसके तुल्य उपासना करने योग्य है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (रायस्कामः) धनों की कामना करनेवाला मैं (पुत्रः) पुत्र (पितरम्) पिता को जैसे (न) वैसे (वज्रहस्तम्) शस्त्र और अस्त्रों के पार जाने और (सुदक्षिणम्) शुभ दक्षिणा रखनेवाला राजा को (हुवे) बुलाता हूँ, वैसे तुम भी बुलाओ ॥३॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो मनुष्य जैसे पुत्र पिता की उपासना करते हैं, वैसे राजा की जो सेवा करते हैं, वे समस्त ऐश्वर्य पाते हैं ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः केन कः किंवदुपासनीय इत्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा रायस्कामोऽहं पुत्रः पितरं न वज्रहस्तं सदक्षिणं राजानं हुवे तथैनं यूयमप्याह्वयत ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (रायस्कामः) यो धनानि कामयते सः (वज्रहस्तम्) शस्त्रास्त्रपाणिम् (सुदक्षिणम्) शोभना दक्षिणा यस्य तम् (पुत्रः) (न) इव (पितरम्) जनकम् (हुवे) ॥३॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । ये मनुष्या यथा पुत्राः पितरमुपासते तथा राजानं ये परिचरन्ति ते सकलैश्वर्यमश्नुवते ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे पुत्र पित्याची सेवा करतात तसे जे राजाची सेवा करतात ते संपूर्ण ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ३ ॥